Monday, August 19, 2013

एक ख्वाब देखा था...

एक ख्वाब देखा था...
अश्कों का सैलाब देखा था...
जिस्म तो चंद लम्हों में डूब गया,
रूह को निकलने को बेताब देखा था...
क्या अच्छा, क्या बुरा...
जो हुआ, सो हुआ...
बीती बातें भूल कर
उम्मीदों की एक नयी दास्ताँ बुनते हैं...
चलो फिर एक नया आशियाँ बुनते हैं...

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