Sunday, August 25, 2013

प्रेम या मिथ्या????

सावन की प्रथम फुहारें थी
या था अपना अल्हड़पन...
एक अखंड प्रेम की अनुभूति या
स्वप्न देश में था ये मन...
वो रीति प्रीति की पावन थी
या गुड्डे गुडियो का छल मात्र...
कुछ ज्ञात नहीं, कुछ याद नहीं,
दुविधा है ये क्या भीषण.....

अबोध ह्रदय ने संभवतः
रचा था ये काव्य अनाम प्रिये...
इसके प्रथम पृष्ठ पर अंकित
अब भी है तुम्हारा नाम प्रिये...
एकाकी चलते युग बीता,
गंतव्य दिखे अन्धकार मात्र...
इस दुस्वप्न की सुबह तुम ही हो,
तुम ही हो इसकी शाम प्रिये...

कब से यूँ रस्ता तकती ,
अब आखें भी पथरायी हैं...
सावन भी आ के बीत गया,
अब कलियाँ भी मुरझाई हैं...
बिछोह सहा ना जाता है,
अब आस भी टूटी जाती है...
जो अब तुम वापस ना आये तो
फिर सब मिथ्या है, परछाई है.......

Thursday, August 22, 2013

चलो एक नया आशियाँ बुनते हैं...

एक बंजारा था,
आवारा था,
निकल पड़ा एक अनजाने सफ़र पर
तन्हा मैं बेचारा था...
तुम आई, कुछ यूँ छाई,
दूर एक मंजिल सी नज़र आई...
अब दोनों साथ मिलकर
इस मोड़ से रास्ता एक नया चुनते हैं...
चलो एक नया आशियाँ बुनते हैं...

Monday, August 19, 2013

एक ख्वाब देखा था...

एक ख्वाब देखा था...
अश्कों का सैलाब देखा था...
जिस्म तो चंद लम्हों में डूब गया,
रूह को निकलने को बेताब देखा था...
क्या अच्छा, क्या बुरा...
जो हुआ, सो हुआ...
बीती बातें भूल कर
उम्मीदों की एक नयी दास्ताँ बुनते हैं...
चलो फिर एक नया आशियाँ बुनते हैं...

Wednesday, August 14, 2013

"प्याज का बदला"

नयी पिक्चर: "प्याज का बदला"